लेखा विभाग के लिपिक को क्यों किया गया निलंबित पढे पूरी खबर

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राजमंगल सिंह

गोंडा 15 मार्च: गोंडा जिले में शिक्षा विभाग में लगातार अनियमितताएं सामने आ रही हैं। इस बार शिक्षामित्रों के मानदेय में अनावश्यक देरी और परिषदीय शिक्षकों और अनुदानित विद्यालय के लिपिक के गलत वेतन भुगतान का मामला प्रकाश में आया है। इस लापरवाही के चलते पटल लिपिक अरुण शुक्ला को निलंबित कर दिया गया है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश दिया था कि शिक्षामित्रों का मानदेय होली से पहले जारी कर दिया जाए, ताकि वे त्योहार खुशी से मना सकें। लेकिन वित्त एवं लेखा विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण शिक्षामित्रों का मानदेय समय पर नहीं जारी हो सका। गोंडा जिले में सैकड़ों शिक्षामित्र कार्यरत हैं, जो पहले से ही कम मानदेय पर काम कर रहे हैं। जब मानदेय में देरी होती है, तो उनके परिवारों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग की छवि को नुकसान हुआ है।

इतना ही नहीं, कई परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों का वेतन बिना उचित सत्यापन के जारी कर दिया गया। नियमानुसार, किसी भी सरकारी शिक्षक का वेतन जारी करने से पहले उनकी सेवा रिपोर्ट, उपस्थिति और वित्तीय स्थिति की जांच अनिवार्य होती है। लेकिन गोंडा के वित्त एवं लेखा विभाग में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जिससे कई योग्य शिक्षकों का वेतन रोका गया और कुछ का बिना संशोधन किए उनके खातों में भेज दिया गया।

गोंडा जिले में शिक्षा विभाग से जुड़े घोटाले पहले भी सामने आते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में फर्जी शिक्षकों को वेतन देने और बिना कार्यरत कर्मचारियों को वेतन जारी करने जैसी कई अनियमितताएं सामने आई हैं। इस बार का मामला अधिक गंभीर है क्योंकि इसमें तीन प्रमुख अनियमितताएं पाई गई हैं:

  1. शिक्षामित्रों का मानदेय रोका गया।

  2. परिषदीय शिक्षकों का वेतन बिना सत्यापन जारी किया गया।

  3. न्यायालय के आदेश के बावजूद एक अवैध कर्मचारी को वेतन दिया गया।

कैसे हो सकता है लेखा विभाग पर निगरानी

वित्त एवं लेखा विभाग पर कंट्रोल और सुधार लाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं, जिनसे विभागीय कार्यों में पारदर्शिता, जिम्मेदारी और प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सके:

  1. सख्त निगरानी और आंतरिक ऑडिट:

    • विभागीय कार्यों की नियमित निगरानी और आंतरिक ऑडिट की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की अनियमितता या लापरवाही का पता चल सके।

    • स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट संस्थाएं गठित की जा सकती हैं, जो समय-समय पर विभाग के सभी वित्तीय कार्यों की जांच करें।

  2. संगठित प्रशिक्षण और कार्यशाला:

    • वित्त एवं लेखा विभाग के कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे सरकारी नियमों और प्रक्रियाओं से परिचित रहें।

    • कर्मचारियों को डिजिटल टूल्स और सॉफ़्टवेयर का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए, ताकि वे अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकें और मानवीय त्रुटियां कम हों।

  3. स्वचालित भुगतान और प्रक्रियाएं:

    • भुगतान और लेखा संबंधी प्रक्रियाओं को स्वचालित करना चाहिए। इससे मैनुअल गड़बड़ियों की संभावना कम हो सकती है और लेन-देन की गति और पारदर्शिता बढ़ सकती है।

    • डिजिटल माध्यमों से वेतन, मानदेय, और अन्य वित्तीय भुगतानों का वितरण सुनिश्चित किया जाए, ताकि प्रत्येक प्रक्रिया पर स्पष्ट ट्रैकिंग हो सके।

  4. भर्ती और नियुक्ति में पारदर्शिता:

    • विभाग में भर्ती, नियुक्ति और प्रमोशन की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी और सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि किसी प्रकार की पक्षपाती निर्णय प्रक्रिया से बचा जा सके।

    • सभी कर्मचारियों की कार्यक्षमता का मूल्यांकन निष्पक्ष तरीके से किया जाना चाहिए।

  5. कार्यक्षमता मापने के मानक:

    • प्रत्येक कर्मचारी की कार्यक्षमता का मूल्यांकन नियमित रूप से किया जाए। यदि कोई कर्मचारी काम में लापरवाह पाया जाता है तो उसे जिम्मेदारी और कार्यक्षमता में सुधार के लिए उचित दिशा-निर्देश दिए जाएं।

    • दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए, जैसे निलंबन या अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई।

  6. पारदर्शिता और जनभागीदारी:

    • विभाग के कामकाज को सार्वजनिक करना चाहिए, जैसे कि सरकारी कर्मचारियों को दी जाने वाली वेतन-मानदेय की जानकारी सार्वजनिक की जाए, ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी को आम लोग आसानी से पकड़ सकें।

    • नागरिकों की भागीदारी बढ़ाई जाए, जैसे शिक्षा विभाग से जुड़ी अनियमितताओं की शिकायत के लिए एक पोर्टल या हेल्पलाइन बनाना।

  7. सामान्य जन जागरूकता और शिक्षा:

    • विभागीय कर्मचारियों को यह समझाने की आवश्यकता है कि उनका कार्य न केवल सरकार बल्कि जनता की सेवा है। उन्हें उनके कार्यों के प्रभाव के बारे में जागरूक किया जाए।

इन कदमों से वित्त एवं लेखा विभाग की कार्यशैली में सुधार लाया जा सकता है और भविष्य में ऐसी अनियमितताएं कम की जा सकती हैं।

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