विनश के लिए बड़ी चेतावनी एवं चुनौती है, बल्कि देश एवं राजनीति के लिए भी
में व्यक्तिगत, दलगत एवं आंतरिक राजनीतिक बयानबाजी न केवल लोकतंत्र घातक संकेत है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रतिपक्ष का नेता जब विदेश की धरती पर अपनी मातृभूमि और व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिकूल बयान देता है, तो भयावह स्थिति की आहट को उजागर करता है। व्यक्तिगत या दलगत हित राष्ट्रीय हितों के सामने अत्यंत नगण्य एवं बौने होने चाहिए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैम पित्रोदा ने कहा कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी ‘पप्पू’ नहीं हैं, और भारतीय जनता पार्टी जो प्रचार करती है, उसके विपरीत वह उच्च शिक्षित, पढ़े गुने और रणनीतिकार हैं। ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष पित्रोदा ने 8 सितम्बर, 2024 को डलास में टेक्सास विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और भारतीय लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता का
परिचय देते हुए यह टिप्पणी की। लोकतंत्र में माननीय संसद सदस्य अब
अपनी मर्यादा, प्रतिष्ठा, गर्व एवं गौरव को तिलांजलि देते हुए व्यक्तिगत और दलगत नीति के दलदल में बुरी तरह से धंसते हुए देखे जा सकते हैं। परिणामस्वरूप हमारा लोकतंत्र बुरी तरह आहत होता जा रहा है। प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर अनेक बार भारतीय लोकतंत्र की आलोचना की है, जिसके कारण उन्हें स्वयं भी आलोचना का सामना करना पड़ा है। उन्होंने दुबई में कहा, ‘भारत में अल्पसंख्यकों को डर है।’ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में कहा, ‘भारत में लोकतंत्र खतरे में है’ तथा सिंगापुर में कहा, ‘भारत में अर्थव्यवस्था खराब है।’ आखिर, ये सब किस तरह की बयानबाजी हैं। प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी के कुछ उन बयानों का उल्लेख करते हैं, जिनके कारण विगत एक दशक से विदेश में जाकर वे विवादों को जन्म देना
अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान रहे हैं। ■ ‘हिन्दुत्व की विचारधारा खतरनाक है’ बर्केले
विश्वविद्यालय में दिया यह बयान
■ ‘विगत 10 वर्षों में भारत के लोकतंत्र को बुरी तरह
नुकसान पहुंचाया गया, लेकिन अब लोकतंत्र फिर
से पटरी पर लौट रहा है’-वाशिंगटन में कहा।
■ अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से मुलाकात की,
काश! हमारे नेता प्रतिपक्ष अपनी ही शशि थरूर की भावनाओं, विचारों एवं समझ कर स्वयं की समीक्षा कर लेते तो विवादित बयान देने से जहां बच जाते, समाज, राज्य, राष्ट्र एवं मानवीय मूल्यों के सोच एवं नई दिशा देने में बेहतर साबित होते। राहुल का यह संकेत है कि हमारी पार्टी विदेश नीति से जुड़े प्रमुख मुद्दों जैसे अमेरिका के साथ संबंध, आतंकवाद खत्म होने तक कोई बातचीत नहीं, बांग्लादेश में चरमपंथी तत्वों को लेकर चिंताओं पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ हैं। विदेशों में भारत की खराब छवि को इस प्रकार से प्रस्तुत करना, क्या भारतीय विदेश नीति को खोखला करना नहीं है? विदेश में देश को नीचा दिखाना किस प्रकार से राष्ट्र की विदेश नीति में भारत सरकार का सहयोग, समर्थन,
जो पाकिस्तान द्वारा आयोजित भारत विरोधी आवाज है, कट्टर इस्लामवादी और स्वतंत्र
कश्मीर की प्रबल पक्षधर हैं
■ ‘चीन के सैनिकों ने लद्दाख में दिल्ली के क्षेत्रफल जितनी जमीन पर कब्जा कर लिया है। मुझे लगता है कि यह त्रासदी है। मीडिया इस बारे में लिखना नहीं चाहता’ वाशिंगटन 11 सितम्बर, 2024
■ सिखों के संदर्भ में कहा था-‘वे जिस लड़ाई में हैं, उसमें सिखों को भारत में पगड़ी और कड़ा पहनने की इजाजत देने की मांग भी शामिल है’
■ मई, 2022 में ब्रिटेन दौरे के दौरान उन्होंने सीबीआई और ईडी का हवाला देते हुए भारत
सरकार की तुलना पाकिस्तान से की थी ■ वर्ष 2018 में फ्रांस में बयान दिया, ‘भारत में व्यक्तिगत या निजी स्वतंत्रता संकट में है’
■ इस वर्ष के लोक सभा चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए कहा, ‘अगर चुनाव निष्पक्ष होते तो भारतीय जनता पार्टी को 240 सीटें भी नहीं मिलती’
■ ‘ भारत में लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए सभी को समान अवसर उपलब्ध नहीं थे, किंतु चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद चीजें बदल गई हैं’
■ मार्च, 2023 में ब्रिटेन दौरे पर राहुल गांधी ने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की थी। मुस्लिम ब्रदर हुड मिस्त्र की संस्था है, जिसकी स्थापना 1928 में हुई। इस पर कट्टरपंथ फैलाने का आरोप लगता रहता है
■ ‘भारत में तमिल, तेलुगू, मलयायम आदि भाषियों पर हिन्दी थोपी जा रही है और उनकी संस्कृति, खान-पान आदि को कमतर बताया जा रहा है’
■ ‘भारत में कौशल की कोई कमी नहीं है, बल्कि कौशल रखने वाले लोगों के लिए सम्मान नहीं है’
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राहुल गांधी के विचारों के अनुसार ‘भारत में सभी संस्थानों और यहां तक कि न्यायिक तंत्र
पर भी चंद लोगों यानी भाजपा और आरएसएस का कब्जा है’
‘ भाजपा और आरएसएस महिलाओं को खास भूमिका तक ही सीमित रखना चाहते हैं। उन्हें घर पर रखना, खाना बनाना और ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए। हमारा मानना है कि महिलाओं
को वह सब कुछ करना चाहिए जो वे करना चाहती हैं’
■ ‘कांग्रेस आरक्षण समाप्त करने के बारे में तब सोचेगी, जब भारत का भेदभाव रहित स्थान होगा और अभी ऐसा नहीं है। दलितों, आदिवासियों और ओबीसी को उचित भागीदारी नहीं मिल रही है’
■ 2018 में ऑस्ट्रेलिया में कहा था, ‘भारत में लोकतंत्र की स्थिति खराब है’ यद्यपि विपक्ष या प्रतिपक्ष के नेता होने के नाते सत्ता पक्ष और सरकार की स्वस्थ
आलोचना करने का अधिकार एवं दायित्व बनता है, किंतु विदेशों में ऐसी बयानबाजी करने, जिससे देश, समाज, व्यवस्था, लोकतंत्र, संस्थाओं एवं मर्यादाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े, से न तो स्वयं और न ही पार्टी को लाभ मिलता है, बल्कि आपके विरोधी दलों को इससे बल मिलता है। अतः पार्टी के सांसद संवेदनाओं को विदेशों में वहां स्वयं, दल, प्रति एक नई जहां तक संभव हो राष्ट्रीय रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय हित एवं राष्ट्रीय संवेदनाओं के प्रति सजग, सतर्क, संयम एवं समझदारी से काम लेना चाहिए। राजनीति की हरकतों एवं हथकंडों से एक बार थोड़े समय के लिए भले लाभ मिल जाए किंतु दूरगामी परिणाम घातक सिद्ध होते हैं। एक राजनेता को अपनी सीमाओं के साथ-साथ समय, स्थान, स्थिति तथा प्रभाव का ध्यान रखते हुए ही बयानबाजी करना
चाहिए।
थरूर ने परंपरा का दिया परिचय
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अमेरिका की
राइस यूनिवर्सिटी के बेकर इंस्टीट्यूट में संवाद के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक शक्ति के तौर पर भारत की स्वस्थ परंपरा परिचय देते हुए देश के महत्त्व पर विशेष बल दिया। स्पष्ट कहा कि भारत में जो कुछ हो रहा है वह दुनिया की आबादी के छठवें भाग को प्रभावित करता है। आज क्रय शक्ति के संदर्भ में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और विश्व मंच पर अब इसे नजरअंदाज या कम करके नहीं आंका जा सकता। भारत के वैश्विक प्रभाव के बारे में दमदार तरीके से अपनी बात रखते हुए थरूर ने रेखांकित किया कि किस प्रकार विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश तथा सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का उदय वैश्विक मामलों में महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है। निःसंदेह थरूर ने भारत के वैश्विक
सहानुभूति तथा सत्यता के साथ सोच का सूचक है? यह बात समझ से परे नजर आती है
प्रभाव का उल्लेख करके देश की प्रतिष्ठा बढ़ाई है।
काश! हमारे नेता प्रतिपक्ष अपनी ही पार्टी के सांसद की इन भावनाओं, विचारों एवं संवेदनाओं को समझ कर स्वयं की समीक्षा कर लेते तो विदेशों में विवादित बयान देने से जहां बच जाते, वहां स्वयं, दल, समाज, राज्य, राष्ट्र एवं मानवीय मूल्यों के प्रति एक नई सोच देने में बेहतर साबित होते।
राहुल का यह संकेत है कि हमारी पार्टी विदेश नीति से जुड़े प्रमुख मुद्दों जैसे अमेरिका के साथ संबंध, आतंकवाद खत्म होने तक कोई बातचीत नहीं, बांग्लादेश में चरमपंथी तत्वों को लेकर चिंताओं पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ हैं। विदेशों में भारत की खराब छवि को इस प्रकार से प्रस्तुत करना, क्या भारतीय विदेश नीति को खोखला करना नहीं है? विदेश में देश को नीचा दिखाना किस प्रकार से राष्ट्र की विदेश नीति में भारत सरकार का सहयोग, समर्थन, सहानुभूति तथा सत्यता के साथ सोच का सूचक है? यह बात समझ से परे नजर आती है। यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि कांगेस सांसद तथा प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी की विदेश यात्राएं विगत अनेक वर्षों से अनवरत विवादों से घिरी रही हैं। चूंकि उनके विदेश में बयान इस प्रकार के होते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से भारतीय लोकतंत्र और संस्थाओं की मर्यादा और प्रतिष्ठा को न केवल बुरी तरह आहत करते हैं, बल्कि लोकतंत्र के भविष्य को भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूम से प्रताड़ित करने के बड़े कारण के रूप में नजर आने लगते हैं। एक राष्ट्र के गौरव और गरिमा को भूलकर अनेक बार संवेदननील मुद्दों पर ‘घातक विमर्श’ गढ़ने का प्रयास करते दिखाई देते हैं।
उनके बयान कि भारत में लोकतंत्र को खतरा, संविधान का संकट, संस्थाओं का पतन एवं मीडिया
की चुप्पी की बात कह कर वह आखिर, क्या संकेत दे रहे हैं?