रामनाथ सिंह “अदम ” से मेरा परिचय 1978 में हुआ।उन दिनों मैं शास्त्री महाविद्यालय में पढ़ाता था परसपुर के रहने वाले मेरे एक शिष्य राजेन्द्र सिंह यथार्थ ने परिचय कराया। फिर तोयह दोस्ती में बदल गया।उनका पहले से ही गोंडा में का. टीकम दत्त शुक्ल के यहाँ आना-जाना था। हम दोनों के घर आसपास थे।कभी अदम मेरे घर रुकते और कभी टीकम भाई के यहाँ। उन्हीं दिनों “पहचान ” नामक साहित्यिक – सांस्कृतिक संस्था का गठन हुआ जिसका अध्यक्ष मुझे और महामंत्री डिग्री कालेज में हिंदी प्रवक्ता व कवि ब्रजभूषण लाल को बनाया गया। पहचान संस्था के माध्यम से हम जन समस्याओं को लेकर नुक्कड़ नाटक करते थे। बहुत प्रसिद्ध हुई यह संस्था। अदम जी सदैव साथ होते थे। यहीं से सिलसिला चल पड़ा। अक्सर वह मेरे घर आने लगे, रहने लगे। मेरे अभिन्न हो गए। साहित्य पर गम्भीर चर्चा होती थी। लोग कहते हैं कि वह पांचवी तक ही पढ़े थे।लेकिन उन्होंने अध्धयन बहुत किया था। मेरे पास उस समय जो भी साहित्य उपलब्ध था, उन्होंने सब पढ़ डाला।पढ़ा ही नहीं ,एक-एक विषय पर बहस भी खूब करते थे। उनका जुड़ाव मंगल भवन मनकापुर के अतुल सिंह जी से भी बहुत था। उनकी लाइब्रेरी की सारी किताबें पढ़ गये अदम। बड़ा गहरा अध्ययन था उनका। वह मुझसे तीन साल बड़े थे लेकिन मुझे अपना गुरु मानते थे। प्रख्यात शायर मुनव्वर राना ने सामर्थ्य पत्रिका में अदम पर लिखते हुए कहा है–“अदम जी जैसे लोगों के पास सत्ता सुख हो चाहे न हो लेकिन उनके पास एस.पी.मिश्र व कुंवर अतुल कुमार सिंह थे ………।”उनके साहित्य पर कमलेश्वर, मुनव्वर राना, डॉ मैनेजर पांडेय, डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी डॉ विजय बहादुर सिंह, मंगलेश डबराल निदा फ़ाज़ली, आलोकधन्वा जे.एन.यू. के प्रोफेसर आलोचक डॉ पुरुषोत्तम अग्रवाल आदि बहुत से आलोचकों ने लिखा है। वह कहते थे–“घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है, बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है।” बस यही है अदम की शायरी की केन्द्रीय अनुभूति।उन्होंने अपनी ग़ज़लों के बारे में लिखा है–“एशियाई हुस्न की तस्वीर है मेरी ग़ज़ल,मशरिकी फन में नई तामीर है मेरी ग़ज़ल।” वास्तव में अदम दुष्यन्त कुमार के गोत्र के कवि हैं।लेकिन अदम की भाषा दुष्यन्त से भिन्न है।दुष्यन्त संकेतों और बिम्बों में बात करते हैं जबकि अदम अभिधा में। अदम की भाषा ज्यादा हिंदुस्तानी है।बहुत याद आते हैं अदम।आज उनका जन्मदिन है।कैसे मनाऊँ तुम्हारा जन्मदिन मेरे दोस्त?मनाते हैं जन्मदिन तुम्हारी इन पंक्तियों के साथ। गाते हैं इन्हें –“हिन्दू-मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये। अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िये।। छेड़िये इक जंग मिलजुलकर ग़रीबी के खिलाफ। दोस्त मेरे मजहबी नगमात को मत छेड़िये।।”