गोंडा, Aaj ka ujala लोकसभा हो या विधानसभा, कभी ऐसी परिस्थिति नहीं बनी जब चुनाव त्रिकोणात्मक या चतुष्कोणात्मक न हुआ हो। दलीय उम्मीदवारों में ऐसी परिस्थिति पहली बार दिख रही है जब गोंडा लोकसभा में बसपा व कांग्रेस सहित अन्य दलों में उत्साह खत्म होता दिख रहा है। कांग्रेस व सपा के मध्य गठबंधन होने के कारण गोंडा से सपा का उम्मीदवार तथा भाजपा से मौजूदा सांसद को ही मैदान में उतारा गया है। लेकिन चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने के लिए पहचान रखने वाली बसपा का मूक प्रदर्शन सीधी लड़ाई की रूपरेखा तय कर दी है।
गोंडा लोकसभा में पांच विधानसभा क्षेत्रों में ऐसा कोई विरोधी दल का नेता नहीं बचा है जो चुनाव के पैंतरे को बदलने की कूबत दिखा सके। भाजपा का 2019 का प्रदर्शन बेहतर रहा, लेकिन बसपा व सपा के गठबंधन के उम्मीदवार रहे विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह ने सीधी टक्कर दी थी जबकि कांग्रेस से कृष्णा पटेल मैदान में थीं। वहीं पीस पार्टी से मसूद खां ने ताल ठोका था। तीन दलों की लड़ाई में भाजपा ने मैदान मारा था। इसी तरह 2014 में भाजपा से कीर्तिवर्धन सिंह, सपा से नंदिता शुक्ला, बसपा से अकबर अहमद डंपी और कांग्रेस से बेनी प्रसाद वर्मा मैदान में थे। इस चतुष्कोणीय चुनाव में भाजपा के कीर्तिवर्धन सिंह चुनाव जीते थे। चारों उम्मीदवारों को एक लाख से अधिक मत प्राप्त हुए थे। इसमें भाजपा के कीर्तिवर्धन सिंह को 359643, सपा की नंदिता को 199227, बसपा के अकबर अहमद डंपी को 116178 तथा कांग्रेस के बेनी प्रसाद वर्मा को 102254 मत प्राप्त हुए थे। 2009 में भी चतुष्कोणीय मुकाबला हुआ था। इसमें भाजपा से राम प्रताप सिंह, बसपा से कीर्तिवर्धन सिंह, सपा से विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह चुनाव मैदान में थे। इसमें कांग्रेस से बेनी प्रसाद वर्मा चुनाव जीत गए थे। 2004 में सपा से कीर्तिवर्धन सिंह, भाजपा से घनश्याम शुक्ला, कांग्रेस से डा विनय कुमार पांडेय मैदान में थे। इसी तरह 1999 में बीजेपी से बृजभूषण शरण सिंह, सपा से कीर्तिवर्धन सिंह, कांग्रेस से दीप नरायन पांडेय व बसपा से अयोध्या नरेश पांडेय चुनाव मैदान में थे। 1998 में भाजपा, सपा, कांग्रेस व बसपा के उम्मीदवार चुनावों में त्रिकोण या चतुष्कोण मुकाबले बनाते देखे गए। लेकिन पहली बार है जब समीकरण बनाने व बिगाड़ने वाले दल खामोश हैं और भाजपा व सपा के बीच सीधा मुकाबला चल रहा है।
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भाजपा व सपा के अलावा किसी दल का नहीं दिखा प्रचार
गोंडा लोकसभा से इस बार भाजपा व सपा के अलावा किसी अन्य दल के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है। बसपा चुप है तो अन्य छोटे क्षेत्रीय दल भी चुप्पी साधे है। कम्युनिस्ट पार्टी ने भी अभी तक चुप है। हालांकि इंडिया गठबंधन में कम्युनिस्ट भी शामिल है। इसके अलावा आप, पीस पार्टी व अन्य दल भी सामने नहीं आए हैं। हो सकता है कि आगे चलकर इसमें किसी दल का उम्मीदवार घोषित हो लेकिन वर्तमान परिदृश्य में सभी परदे के पीछे ही नजर आ रहे हैं।
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दिखेगा वोटों का ध्रुवीकरण
दो दलों में एक राष्ट्रीय तो दूसरा क्षेत्रीय दल के उम्मीदवारों के मध्य सीधी टक्कर होने की अधिक उम्मीद है। इन दो दलों के मध्य ही वोटों का ध्रुवीकरण होना माना जा रहा है। एमवाई फैक्टर व उम्मीदवार का जातीय फैक्टर लेकर सपा ने अपना उम्मीदवार श्रेया वर्मा को उतारा है जबकि राष्ट्रवाद, अध्यात्मवाद, विकास व हिंदू एजेंडे को लेकर भाजपा का पुराना उम्मीदवार कीर्तिवर्धन सिंह ही मैदान में अभी तक नजर आ रहे हैं। इसलिए हिंदू व मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से नकारा नहीं जा सकता है। 80-20 के रेशियों में कौन कितना बाजी मारता है यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन वोटों का ध्रुवीकरण होना तय है।