कैसे लूज हुई भारत की करेंसी 2014 से 2023 मैं कितना आया फर्क पढ़े पूरी रिपोर्ट

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डेस्क रिपोर्ट राज मंगल सिंह

2014 से 2023 में कितना आया फर्क भारतीय करेंसी पर

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही देश को अपनी वाह वाही का अपने कार्यों का डिढौरा पीट रहे हैं लेकिन भारतीय मुद्रा में काफी बदलाव आया 2014 से 2023 के बीच भारतीय करेंसी लूज होने से भारत के लिए एक बड़ा समस्या है ।  बेरोजगारी लगातार महंगाई जैसी समस्या भारत में आम हो चुकी है भारतीय बस्तु हो या फिर विदेशी वस्तु सभी का मूल्यांकन अमेरिकी डॉलर के हिसाब से ही निर्धारित होता है ऐसे में भारत की ई लूज होने पर भारतीय लोगों के लिए महंगाई बड़ी मुसीबत बनती जा रही है । किसने की आय में वृद्धि न होने का कारण अधिक मूल्य लगा लागत में बड़ा कारण रहा है

किसानों को खेती के लिए डीजल की आवश्यकता होती है फर्टिलाइजर की आवश्यकता होती है पेस्टिसाइड की आवश्यकता होती है इन सब चीजों का मूल्य अमेरिकी डॉलर के अनुसार निर्धारित होता है लेकिन किसान की उपज जब होती है तो सरकार खरीदने का रेट लगती है वह भी अपने मनसा अनुसार किस को स्वतंत्रता नहीं है अपनी उपज को अपने मनचाहे रेट पर बेचने का लेकिन वहीं दूसरी तरफ फैक्ट्री से निर्मित की गई वस्तुओं का मूल्य सरकार नहीं लगती है बल्कि निर्माता कंपनी लगती है सबसे में कारण है भारत की मुद्रा का लूज होने का सरकार समय रहते अगर इस पर कार्य नहीं करती है तो मध्यम वर्गीय व्यक्ति के लिए बड़ी समस्या बन जाएगी किसान होते हुए भी वह गरीब की श्रेणी में ही रहेंगे ।

भारत की करेंसी, यानी भारतीय रुपया, के लूज होने का आकलन आमतौर पर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले किया जाता है। 2014 में, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 60-65 के आसपास था, जबकि 2023 में यह लगभग 80-85 के बीच है। इस अवधि में रुपया अपेक्षाकृत अधिक लूज हुआ है।

रुपये के लूज होने के कई कारण हैं। पहले, वैश्विक आर्थिक स्थितियां प्रभावित करती हैं। 2014 के बाद से, वैश्विक आर्थिक संकट, यूक्रेन-रूस युद्ध, और COVID-19 महामारी ने अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है, जिससे निवेशकों का विश्वास प्रभावित हुआ।

दूसरे, भारत में महंगाई दर का स्तर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि महंगाई दर अधिक है, तो केंद्रीय बैंक (आरबीआई) को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं, जिससे आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।

तीसरे, भारत का व्यापार घाटा भी रुपये के मूल्य को प्रभावित करता है। यदि आयात निर्यात से अधिक है, तो इससे रुपया कमजोर होता है। 2014 से अब तक, भारत का आयात बढ़ा है, खासकर कच्चे तेल के कारण, जिसने व्यापार घाटे को बढ़ाया है।

चौथे, विदेशी निवेश में बदलाव भी एक महत्वपूर्ण कारक है। यदि विदेशी निवेशकों का निवेश भारत से कम हो जाता है, तो यह रुपये के मूल्य को प्रभावित कर सकता है।

संक्षेप में, भारत की करेंसी 2014 की तुलना में अधिक लूज हुई है, और इसके पीछे विभिन्न आर्थिक कारक हैं, जैसे वैश्विक स्थिति, महंगाई, व्यापार घाटा, और विदेशी निवेश का प्रवाह।

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