गोण्डा 22 अक्तूबर, 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरू स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में देवकली सिंह और मांडवी सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर ‘अदम गोंडवी’ के नाम से विख्यात हुए। थे। दुष्यंत ने अपनी गजल से शायरी की जिस नई राजनीति की शुरुआत की थी, अदम गोंडवी ने उसे मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की। उस मुकाम तक, जहां से एक-एक चीज बिना धुंधलके के पहचानी जा सके।
गोंडवी जब मुशायरे के मंच से अपनी रचनाएं पढ़ते थे तो न सिर्फ उसमें व्यवस्था के प्रति तीक्ष्ण व्यंग्य होता था बल्कि वे सीधे-साधे लोगों के दिलों में बस जाती थीं। यही वजह है कि वे जन-जन के कवि बन गए थे। में आम आदमी की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद था। उनकी शायरी न हम वाह करने का अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है। सीधे-सीधे लफ्जों में बेतकल्लुफ विचार उसमें होते थे। निपट गंवई अंदाज में महानगरीय चकाचैंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली गोंडवी की अदा सबसे जुदा और सबसे विलक्षण थी
धरती की सतह पर’ व ‘समय से मुठभेड़’ जैसे चर्चित गजल संग्रहों ने उन्हें हिंदीभाषी क्षेत्रों में काफी ख्याति और सम्मान दिलाया। वर्ष 1998 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से नवाजा था। यह भी दुर्भाग्य है कि आम आदमी की बात करने वाले अदम गोंडवी अपने जीवन के अंतिम दिनों में लीवर सिरोसिस की बीमारी से पीड़ित थे, और 18 दिसम्बर 2011 को इस आम आदमी के कवि का निधन हो गया।
अदम जी की लिखी कुछ पंक्तियां मैं लिख रहा हूं
काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में ।
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत,
इतना असर है खादी के उजले लिबास में।
आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें,
संसद बदल गई हैं यहां की नखास में।
जनता के पास एक ही चारा है बगावत,
यह बात कर रहा हूं मैं होशो-हवास में।
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खे कब तलक नारों से दस्तरखान को।
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को।
जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है
लगी है होड़ – सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है
इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है
कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है
रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है