हिंदू पंचांग के अनुसार सब त्योहार तो नववर्ष क्यों नहीं
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हुआ कालखंड
भारतीय संस्कृति एवं विश्व का आधार उसके कालखंड से जुड़ा हुआ है। ईशा के 57 वर्ष पहले संवत यानि दिन सप्ताह व माह को वर्ष के रूप में प्राख्यापित किया गया। इसी पंचांग के आधार पर भारतीय मांगलिक कार्य, पर्व, त्योहार मनाते हैं। सूर्य और चंद्रमा के बढ़ते व घटते चक्र की जानकारी दुनिया को मिल रही है। प्रकृति में होने वाली घटनाओं का रहस्य भी भारतीय पंचांग में निहित है। मान्यता है कि भारतीय नववर्ष उसी दिन शुरू होता है जिस दिन सृष्टि का सृजन शुरू हुआ। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही ब्रम्हा ने रचना शुरू की थी।
नववर्ष के दिन प्रत्येक इंसान चाहे कहीं भी हो अपने आपको को उत्साहित, प्रफुल्लित व नई उर्जा से ओतप्रोत महसूस करता है। अधिकतर देशवासी 1 जनवरी को ही नववर्ष की शुरुआत मानते हैं लेकिन अपनी संस्कृति व इतिहास के प्रति हमारी उदासीनता के चलते यह सत्य नहीं है। 1 जनवरी से शुरू होने वाला कैलेंडर तो ग्रिगोरियन कैलेंडर है। इसकी शुरूआत 15 अक्टूबर 1582 को इसाई समुदाय ने क्रिसमस की तारीख निश्चित करने के लिए की थी क्योंकि इससे पहले 10 महीनों वाले रूस के जूलियन कैलेंडर में बहुत सी कमियां होने के कारण हर साल क्रिसमस की तारीख निश्चित नहीं होती थी। इस उलझन को सुलझाने के लिए 1 जनवरी को ही इन लोगों ने नववर्ष मनाना शुरू कर दिया।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का आगाज 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर आरंभ होता है जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्सर मार्च-अप्रैल माह में आता है। हिंदू नववर्ष यानी संवत 2079 इस वर्ष 2 अप्रैल यानी शनिवार से शुरू होने जा रहा है। शास्त्रों में कुल 60 संवत्सर बताए गए हैं। मान्यता है कि नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी मानते हैं। 2 अप्रैल को शनिवार का दिन है इसलिए इस वर्ष के देवता शनि महाराज हैं।
इसके साथ ही नवसंवत्सर का निवास कुम्हार का घर व समय का वाहन अश्व होगा। भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय हिंदू कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य की जीत के बाद जब उनका राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने अपनी प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने की घोषणा करने के साथ ही भारतीय कैलेंडर को जारी किया इसे विक्रम संवत नाम दिया गया।
विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। सबसे बड़ी विशेषता इस कैलेंडर की यह है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है। सभी 12 महीने राशियों के नाम पर हैं, इसका समय 365 दिन का होता है। बात करें चन्द्र वर्ष की तो इसके महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं। इसकी समयावधि 354 दिनों की होती है शेष बढ़े हुए 10 दिन अधिमास के रूप में माने जाते हैं। ज्योतिष काल की गणना के अनुसार इसके 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है। एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 ही मानी गई है। सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं वैसे तो अधिमास के 10 दिन चन्द्रवर्ष का भाग है लेकिन इसे चंद्रमास न कह कर अधिमास कह दिया जाता है।
भारतीय नववर्ष
विक्रम संवत् या विक्रमी भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित हिन्दू पंचांग है। भारत में यह अनेकों राज्यों में प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग है। नेपाल के सरकारी संवत् के रुप मे विक्रम संवत् ही चला आ रहा है। इसमें चान्द्र मास एवं सौर नाक्षत्र वर्ष (solar sidereal years) का उपयोग किया जाता है। प्रायः माना जाता है कि विक्रमी संवत् का आरम्भ 57 ई.पू. में हुआ था। (विक्रमी संवत् = ईस्वी सन् + 57) ।
इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है (अधिमास, देखें)।
जिस दिन नव संवत् का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है।
आरम्भिक शिलालेखों में ये वर्ष ‘कृत’ के नाम से आये हैं। 8वीं एवं 9वीं शती से विक्रम संवत् का नाम विशिष्ट रूप से मिलता है। संस्कृत के ज्योतिष ग्रन्थों में शक संवत् से भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए सामान्यतः केवल ‘संवत्’ नाम का प्रयोग किया गया है (‘विक्रमी संवत्’ नहीं)।
उद्भव
‘विक्रम संवत’ के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। कुछ लोग ईसवी सन ७८ और कुछ लोग ईसवी सन ५४४ में इसका प्रारम्भ मानते हैं।
फ़ारसी ग्रंथ ‘कलितौ दिमनः’ में पंचतंत्र का एक पद्य ‘शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्’ का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः ‘कृत संवत’ को ‘विक्रम संवत’ का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु ‘कृत’ शब्द के प्रयोग की सन्तोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में मालवगण का संवत उल्लिखित है, जैसे- नरवर्मा का मन्दसौर शिलालेख। ‘कृत’ एवं ‘मालव’ संवत एक ही कहे गए हैं, क्योंकि दोनों पूर्वी राजस्थान एवं पश्चिमी मालवा में प्रयोग में लाये गये हैं। कृत के २८२ एवं २९५ वर्ष तो मिलते हैं, किन्तु मालव संवत के इतने प्राचीन शिलालेख नहीं मिलते। यह भी सम्भव है कि कृत नाम पुराना है और जब मालवों ने उसे अपना लिया तो वह ‘मालव-गणाम्नात’ या ‘मालव-गण-स्थिति’ के नाम से पुकारा जाने लगा। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यदि ‘कृत’ एवं ‘मालव’ दोनों बाद में आने वाले विक्रम संवत की ओर ही संकेत करते हैं, तो दोनों एक साथ ही लगभग एक सौ वर्षों तक प्रयोग में आते रहे, क्योंकि हमें ४८० कृत वर्ष एवं ४६१ मालव वर्ष प्राप्त होते हैं।
‘कलकाचार्य कथा’ नामक पाण्डुलिपि में वर्णित जैन भिक्षु कलकाचार्य और राजा शक (छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय, मुम्बई)
महीनों के नाम
महीनों के नामपूर्णिमा के दिन नक्षत्र जिसमें चन्द्रमा होता है
चैत्र- चित्रा, स्वाति
बैशाख- विशाखा, अनुराधा
जेष्ठ- जेष्ठा, मूल
आषाढ़- पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, सतभिषा
श्रावण- श्रावण, धनिष्ठा
भाद्रपद- पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद
आश्विन- अश्विन, रेवती, भरणी
कार्तिक- कृत्तिका बदी, रोहणी
मार्गशीर्ष- मृगशिरा,उत्तरा
पौष पुनर्वसु, पुष्य
माघ- मघा, अश्लेशा
फाल्गुन- पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त
प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं, जिसे कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष कहते हैं।
भारतीय नव वर्ष
भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से १३ अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार १४ मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिळ नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु १३ या १४ अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल १५ जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह १९ मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है। इस दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है।लेकिन यह व्यापक नहीं है। अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी १४ या १५ अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :
1) इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
2) सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
3) प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
4) शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
5) सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।
6) स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया।
7) सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8) राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। विक्रम संवत की स्थापना की ।
9) युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
10) संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।
11) महर्षि गौतम जयंती
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :
1) वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2) फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3) नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ :
1) हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें , झंडे, बैनर….आदि लगावे ।
2) आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
3) इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहराएँ।
4) आपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ।
5) घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।
6) इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।
7) प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें।
8) इस दिन के महत्वपूर्ण देवताओं, महापुरुषों से सम्बंधित प्रश्न मंच के आयोजन करें।
9) वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजन संध्या , महाआरती आदि का आयोजन करें।
10) चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम।