विलुप्त हो रहा है योगिराज भरत जी की कुलदेवी काली स्थल का अस्तित्व

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अतिक्रमण कर हाईवे के किनारे कुलदेवी काली के रास्ते को किया संकरा, अब सैकड़ों वर्ष पुराने देवी स्तंभ को खरपतवार से ढककर पौराणिकता मिटाने की कोशिश
– दर्शनार्थ पूजन को कुलदेवी तक नहीं पहुंच पाते श्रद्धालु, दुखी होते हैं संत महंत

 

मसौधा। अतिक्रमण के चलते सैकड़ों वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा स्थापित भरत जी की कुलदेवी काली पूजन स्थल का अस्तित्व खतरे में है। भरतकुंड पर हाइवे किनारे पर्यटन विभाग की एकड़ भूमि में फैले कुलदेवी स्थल पहुंचने के रास्ते को मकान दुकान बनाकर सकरा किया गया। अब बानगी भर प्रमाणिकता के लिए जमीन से 1 फीट ऊपर दिखता कुल देवी काली पूजन शिलालेख स्तंभ को खरपतवार लकड़ी का ढेर लगाकर इस सिद्ध पीठ की महिमा को समूल जड़ से मिटाने की कोशिश की जा रही है। मौके का आलम यह है कि अतिक्रमणकारियों ने मंदिर स्थल के चारों तरफ पक्की दुकानों को ही नहीं बनाया,अपितु बची खुची जगहों पर तंबू कनात लगाकर ठेला,जलपान की दुकानों की घेराबंदी इस कदर कर ली है कि सुदूर जिलों प्रांतों से आये श्रद्धालु भरत की कुलदेवी स्थल को खोज नहीं पाते हैं। माना यह जा रहा है की आक्रमणकारियों की इस कार्यप्रणाली से जहां कुलदेवी की महिमा का प्रसाद पाने से श्रद्धालु वंचित हो रहे हैं वहीं भरत जी तपोभूमि की सिद्ध पीठ की पौराणिकता पर भी बट्टा लग रहा है।
अयोध्या प्रयागराज हाईवे के किनारे स्थित योगीराज भरत जी की तपोभूमि से करीब 300 मीटर दूर स्थित भरत जी की कुलदेवी काली की महिमा पर बातचीत के दौरान भरत हनुमान प्राचीन मिलन मंदिर के महंत हनुमान दास जी ने मायूसी भरे अंदाज में कहा कि संवत 2079 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा भरतकुंड पर स्थापित किया गया प्रमुख रूप से तीन स्थान है। जिसमें प्रथम भरत जी का प्राचीन मंदिर, दूसरा भरत जी की कुलदेवी काली मंदिर और तीसरा सरोवर की सीढ़ियों और बुर्ज जो लाखौरी ईटों से बना। जिसमें मंदिर और सरोवर सहित बुर्ज तो विद्वमान हैं। परंतु भरत जी की कुलदेवी काली जी के स्थान पर अतिक्रमणकारियों का ग्रहण है।जो देवी की महिमा को विलुप्त कर रहे हैं। जबकि ऐतिहासिकता के मुताबिक सच्चाई यह है कि प्राचीन भरत मंदिर से 200 मीटर दूर पौराणिक कैकेई सरोवर है। जहां भरत जी स्नान ध्यान, आचमन कर जल लेकर सरोवर से 100 मीटर दूर कुलदेवी काली पूजन स्थल स्तंभ जो कभी टीले के समान था, जाते थे और वहां से पूजन अर्चन के बाद ही अपने तप स्थल प्राचीन मंदिर आते थे। जहां मौजूदा आलम यह है जगजाहिर स्थान तो आज भी विद्यमान है परंतु भरत जी का सबसे पसंदीदा पूजन स्थल कुलदेवी काली के स्थान की महिमा का लाभ श्रद्धालु अतिक्रमणकारियों की कारस्तानी से नहीं पा रहे हैं। इतना ही नहीं जबकि सुदूर जिलों और प्रांतों से आने वाले श्रद्धालु भी मंदिर पर आते ही कुलदेवी के दर्शन की बात करते हैं। बखान करते हैं। उनके स्थान पर दर्शनार्थ जाने की इच्छा जताते हैं। रास्ता बताया भी जाता है। लेकिन लोग नहीं पहुंच पाते। उन्होंने बातचीत के दौरान अश्रुपूरित नम आंखों से कहा कि शासन प्रशासन भले ही कुलदेवी स्थान के सौंदर्यीकरण की ओर ध्यान नहीं दे रहा है लेकिन कुलदेवी की महिमा को विलुप्त करने वाले लोग यहां सुखी भी नहीं हैं।

पर्यटन विभाग की भूमि पर हाईवे किनारे कुलदेवी काली स्थान के इर्द-गिर्द जमे अवैध कब्जेदारों के मकान दुकान की जांच कराई जानी चाहिए। दोषियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए। भरत की कुलदेवी काली का भी सौंदर्यीकरण होना चाहिए। जिससे श्रद्धालु कुलदेवी की महिमा का प्रसाद पा सकें
महंत हनुमान दास
प्राचीन भरत हनुमान मिलन मंदिर

 

भरत जी की तपोभूमि भरतकुंड पर स्थापित भरत जी की कुलदेवी काली स्थान को सुरक्षित कराया जाएगा। जांच कराकर दिखवाते हैं कि कुलदेवी के इर्द गिर्द यदि अतिक्रमण किया गया है तो कार्रवाई होगी। यथासंभव कुलदेवी के स्थान का सौंदर्यीकरण भी होगा।
अनुराग प्रसाद
उप जिलाधिकारी सोहावल

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