अगर आप कहीं भी परिवार को धार्मिक स्थल पर घूमना चाहते हैं तो एक बार गोंडा जनपद में हर हिंदू को पहुंचना चाहिए
अगर आप गर्मी की छुट्टियों में कहीं सैर सपाटे पर जाने की योजना बना रहे हैं, तो आपको एक बार गोंडा जरूर जाना चाहिए. रामलला की जन्मस्थली अयोध्या से लगा यह जिला ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है. आज हम आपको गोंडा के उन पर्यटन स्थलों के बारे में बता रहे हैं, जहां कम खर्च में आप घूम सकेंगे और ज्यादा आनंदित हो सकेंगे।
स्वामी नारायण छपिया
स्वामीनारायण छपिया मंदिर का बहुत ही बड़ा इतिहास है जिसका वर्णन कर पाना मुश्किल है लेकिन गुजरात से लेकर कोरिया तक के लोग स्वामीनारायण छपिया मंदिर दर्शन करने आते हैं प्रांगण में रहने खाने के लिए अच्छी व्यवस्था है कहा जाता है चाहे वह गुजरात का अक्षरधाम मंदिर हो या फिर दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर सभी मंदिर यही की शाखा है ।छपिया मंदिर गोंडा से 50 किलोमीटर दूर स्थित है यहां जाने के लिए छपिया से लखनऊ तक परिवहन निगम द्वारा दो एसी बसों का संचालन किया जा रहा है. साथ ही रेलमार्ग के माध्यम से छपिया पहुंचा जा सकता है. मंदिर प्रशासन द्वारा यात्रियों के रहने-खाने का इंतजाम किया जाता है।
मंदिर परिसर में ही एसी रूम के साथ ही अन्य व्यवस्थाएं हैं. बताया जाता है कि छपिया में स्वामी नारायण संप्रदाय के प्रर्वतक घनश्याम महाराज की जन्मस्थली है. यहां हर साल देश-विदेश से लाखों लोग दर्शन करने आते हैं. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां भारी भीड़ होती है.
पृथ्वीनाथ मंदिर
द्वापर युग में हुआ था पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापना जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर खरगुपुर में प्राचीन पृथ्वीनाथ मंदिर स्थित है. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काले कसौटी के पत्थर का है. प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक, पांडव पुत्र भीम ने द्वापरयुग में इस शिवलिंग की स्थापना की थी. यहां हर सोमवार को मेला लगता है, जबकि सावन के महीने और शिवरात्रि में हजारों श्रद्धालु दर्शनों के लिए यहां आते हैं और बगल में ही झाली धाम है जिसको पर्यटन विभाग द्वारा सुसज्जित किया गया है आज भी यहां पर कामधेनु गाय मौजूद है जहां पर सुबह कामधेनु गाय के दूध से भोग लगता है।
यहां ऐसे पहुंचा जा सकता है
यहां सिर्फ सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है. टैक्सी और निजी वाहन के जरिए आप यहां पहुंच सकते हैं. पृथ्वीनाथ मंदिर से थोड़ी ही दूर झालीधाम आश्रम है. यहां पर यात्रियों के ठहरने और खाने की बढ़िया व्यवस्था है।
वाराही मंदिर

वाराही मंदिर की विशेषता यह है की यह शक्तिपीठ है यहां पर लोगों का अटूट आस्था है कहा जाता है एक बार सच्चे मन से जो भी मुरादे मान लेता है उसकी मुराद माताजी पूरी करती है ।यह मंदिर जिला मुख्यालय से मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जिले के मुकंदपुर में स्थापित मां वाराही देवी मंदिर भक्तों को अटूट आस्था का केंद्र माना जाता है. वराह पुराण के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था. तब पाताल लोक जाने के लिए आदिशक्ति की उपासना की थी, तो मुकुंदपुर में सुखनई नदी के तट पर मां वाराही देवी अवतरित हुईं थीं।
यहां मौजूद है अद्भुत सुरंग
इस मंदिर में एक सुरंग भी है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, भगवान वराह ने पाताल लोक तक का मार्ग इसी सुरंग से तय किया था और हिरण्याक्ष का वध किया था. माना जाता है कि मां वाराही देवी के इस मंदिर में भक्तों को काफी सुकून और आनंद मिलता है.
मंदिर की सुरंग के गर्भगृह में अखंड ज्योत प्रज्ज्वलित है. मान्यता है कि यहां प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाने से आंखों से जुड़ी बीमारियां ठीक हो जाती हैं. इस सुरंग की गहराई आज तक मापी नहीं जा सकी है. यहां आने के लिए परिवहन निगम बस संचालित करा रहा है। यह पूरा मंदिर परिसर एक ही बरगद के पेड़ के नीचे स्थापित है जिसका जड़ पता कर पाना मुश्किल है कहां तना है कँहा पर जड़ है यह पता कर पाना मुश्किल है। यहां पर लोग मुरादे अपनी लेकर आते हैं और ईट पलटने की प्रथा यहां पर है ईट को रखकर आप अपनी मुराद की अर्जी लगाएंगे और जब आपकी माताजी सुन लेंगे आकर लोग फिर से उस स्थान से दूसरे स्थान पर रख देते हैं।
पार्वती-अरगा पक्षी विहार

गोंडा जिले का सबसे खास पर्यटन स्थल है पार्वती-अरगा पक्षी विहार. यहां सालभर में लाखों टूरिस्ट सैर सपाटे के लिए आते हैं. सड़क मार्ग के जरिए यहां पहुंचा जा सकता है. जिला हेडक्वार्टर से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पार्वती-अरगा पक्षी विहार.
यहां सर्दियों में विदेशी पक्षी आते हैं. पार्वती-अरगा पक्षी विहार के नाम से जानी जाने वाली इस झील की मान्यता है कि यह मां पार्वती और शिवजी के अगाध प्रेम की निशानी है. रामसर साइट के जरिए आप ऑनलाइन पार्वती-अरगा पक्षी विहार की पूरी डिटेल देख सकते हैं.
पसका संगम
पसका का संगम वह स्थान है जहां पर संगम का मेला आज भी लगता है और एक माह कल्प वासी आकर कल्पवास करते हैं आप यहां सड़क मार्ग के द्वारा पहुंच सकते हैं. निजी वाहन या फिर टैक्सी की सुविधा आपको उपलब्ध हो सकती है. ऐसा माना जाता है कि यहां सरयू, घाघरा और टेढ़ी नदियों का संगम होता है. यह लघु प्रयाग संगम कहलाता है. इस संगम तट पर हर साल मेला लगता है.
यहां से कुछ दूरी पर ही राजापुर में गोस्वामी तुलसीदास का जन्मस्थान है. यहां मंदिर में श्रीराम, लक्ष्मण, मां सीता और तुलसीदास जी की प्रतिमा स्थापित है. सूकरखेत में गुरू नरहरिदास का आश्रम और भगवान वराह का मंदिर भी है।