चेतना साहित्य परिषद का 52 वा स्थापना दिवस व सम्मान समारोह संपन्न

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चेतना साहित्य परिषद का ५२वा’ स्थापना दिवस एवं सम्मान समारोह सम्पन्न
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विभिन्न अलंकरणो’ एवं नामित सम्मानों से सोलह विभूतियों का सम्मान
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साहित्यकारों का सम्मान श्रेष्ठ समाज के निर्माण का कारक : प्रो. ऊषा सिन्हा
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लखनऊ। आज प्रदेश की चर्चित साहित्यिक संस्था चेतना साहित्य परिषद के ५२वे’ स्थापना दिवस पर संस्था के तीन सम्मानों सहित कुल सोलह सम्मान विभिन्न साहित्य-साधकों को प्रदान किये गये।
इस अवसर पर संस्था के महामन्त्री एवं चर्चित कवि श्री प्रमोद द्विवेदी ‘प्रमोद’ की प्रबन्धकाव्य कृति ‘माँ’ का लोकार्पण भी सम्पन्न हुआ।
संस्था का सर्वोच्च सम्मान ‘चेतना गौरव’ वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमाशंकर सिंह को, चेतना रत्न सम्मान डॉ. आशुतोष वाजपेयी को तथा चेतना श्री सम्मान युवा कवि श्री राजकिशोर ‘नमन’ को प्रदान किया गया।


यह जानकारी देते हुए महामन्त्री श्री प्रमोद द्विवेदी ‘प्रमोद’ ने बताया कि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ऊषा सिन्हा की अध्यक्षता, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश मिश्र के मुख्य आतिथ्य एवं संस्था के संरक्षक श्री रत्नेश गुप्त के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न इस समारोह में श्री हरीलाल मिलन को रामजीदास कपूर स्मृति सम्मान, श्री मनमोहन मिश्र को पुष्पा कपूर स्मृति सम्मान, सीतापुर के डॉ. सुनील कुमार सारस्वत को जगमोहन नाथ कपूर स्मृति सम्मान, वरिष्ठ कवि श्री जमुनाप्रसाद उपाध्याय को धर्मांश सम्मान, श्री रमेश चन्द्र सिंघल को विशिष्ट सहयोग सम्मान, श्री अवधेश गुप्त नमन को पं. शिवशंकर मिश्र स्मृति सम्मान, श्री सर्वेश अस्थाना को चमनलाल अग्रवाल स्मृति सम्मान, युवा कवि एवं कार्टूनिस्ट श्री हरि मोहन वाजपेयी ‘माधव’ रमनलाल अग्रवाल स्मृति सम्मान, श्री जगदीश शुक्ल को कृष्ण मुरारी स्मृति सम्मान, डॉ. भालचंद्र त्रिपाठी को रूपनारायण द्विवेदी सम्मृति सम्मान, श्री भरतदीप माथुर ‘दीप’ को जियालाल अग्रहरि स्मृति सम्मान, डॉ. राधेश्याम तिवारी को डॉ. दाऊजी गुप्त स्मृति सम्मान तथा श्री नवीन शुक्ल ‘नवीन’ को साहित्य संवर्द्धन सम्मान प्रदान किया गया।विशिष्ट अतिथि श्री रत्नेश गुप्त ने संस्था के साहित्यिक अवदान पर विशेष प्रकाश डाला।मुख्य अतिथि डॉ० अखिलेश मिश्र ने सम्मान की परम्परा को बनाये और बचाये रखने पर बल दिया। अन्त में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो० उषा सिन्हा ने कहा कि संवेदना ही काव्य का श्रेष्ठतम उत्स है।यह संवेदना ‘माँ’ जैसे पावन संबंध का सम्बल पाकर अमर हो जाती है।उन्होंने कहा कि आज लोकार्पित ‘प्रमोद’ जी की कृति ‘माँ’ संवेदना का विरल प्रबंध-काव्य है। इसके अतिरिक्त संस्था को साधुवाद देते हुए यह भी कहा कि जिस देश या समाज में साहित्यकारों का सम्मान होता है वहाँ श्रेष्ठ पीढ़ी का निर्माण होता है।

प्रमोद द्विवेदी’प्रमोद’
महामंत्री

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