क्या भाजपा मायावती को सचमुच राष्ट्रपति पद का आफर दे रही है?

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वीर विक्रम बहादुर मिश्र

क्या भाजपा मायावती को सचमुच राष्ट्रपति पद का आफर दे रही है?
ऐसा लगता नहीं है।भाजपा ने तीन बार समर्थन देकर मायावती को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन करवाया पर मायावती ने हर बार भाजपा की जड़ों पर प्रहार की चेष्टा की।केंद्र में अटल जी की सरकार मायावती के महज एक वोट के कारण सत्तारूढ़ नहीं हो पायी।अब जब बसपा अपने ही कारणों से सिकुड़कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में मात्र एक सीट पर आ चुकी है तब भाजपा उसे राष्ट्रपति पद सौंपने को तैयार होगी उससे इस राजनीतिक अनाड़ीपने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मायावती को राष्ट्रपति पद को लेकर जो चर्चाएं चल रही हैं वह पूर्व में हुई कुछ घटनाओं को लेकर हुई अटकलबाजियों का परिणाम लगती हैं।
दो जून 1995 की रात बसपा की तत्कालीन महासचिव मायावती पर सपाइयों के हमले के फलस्वरूप भाजपा ने अपना समर्थन देकर उन्हे मुख्यमंत्री बनवा दिया था।तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने रात में ही मायावती को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी थी।उस समय विधानसभा में बसपा की सदस्य संख्या मात्र 67 और भाजपा की सदस्य संख्या 173 थी।बाद में मंत्रिमंडल का विस्तार के डी सिंह बाबू स्टेडियम में हुआ था।उस समय यह प्रश्न तेजी से उठा था कि अपने बड़े संख्या बल से बसपा को समर्थन देकर भाजपा कौन सी राजनीति करना चाहती है।
इस संदर्भ में मैंने लोकसभा में तत्कालीन नेता विपक्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी से बातचीत की थी।वाजपेयी जी ने स्पष्ट कहा था कि भाजपा किसी व्यक्ति विशेष की पार्टी नहीं है वल्कि भाजपा में कोई भी व्यक्ति विशेष किसी भी सर्वोच्च पद पर आसीन हो सकता है। बसपा में जो दलित वर्ग है वह भी तो हिंदू ही है हम उसके साथ हैं। हमारे यहां आज हम यहां पर हैं कल कोई और परसों कोई और होगा। सरकार बनने पर कांशीराम राष्ट्रपति मायावती गृहमंत्री या कोई और किसी महत्वपूर्ण पद पर हो सकता है। हमारे यहां छोटे से छोटा कोई कार्यकर्ता किसी भी बड़े पद पर पहुंच सकता है। उस समय बसपा और भाजपा के वोटबैंक की एकजुटता की चर्चाएं बहुत तेज चली थीं परंतु कालांतर में मायावती ने जो कार्यपद्धति अपनाई उससे उपजी खटास ने दोनो दलों में दूरियां पैदा कर दीं। परंतु बाद के दो चुनाव में भी भाजपा ने बसपा को ही आगे रखकर सरकार चलाने की चेष्टा की पर दोनों बार सरकार अपना कार्यकाल पूरा न कर सकी।
फिर तो उत्तर प्रदेश की जनता ने ही अपनी जागरूकता दिखाई। उसने 2007में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा को और 2012 के चुनाव में सपा को पूर्ण बहुमत प्रदान कर सबकी कार्यशैली की परीक्षा ली। वर्ष 2017 के चुनाव के बाद पुनः 2022 के चुनाव में भाजपा की कार्यप्रणाली की राज्य की जनता ने पुष्टि कर दी। अब इन स्थितियों में लगता नहीं कि जिसकी राजनीति को जनता ने नकार दिया हो जिसने पग पग पर दिये समर्थन का मूल्य न समझा हो उसे पार्टी अब अपना तोहफा सौंपेगी। भाजपा में तब सर्वाधिक उदारवादी चेहरे के रूप में अटल जी थे.उनकी उदारता में राजनीति नहीं होती थी.अब जो राजनीति है वह राजनीति ही है।

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