खबर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से है जहां अनुदानित विद्यालय को लेकर महासंग्राम गोंडा में छिड़ा हुआ है सोशल मीडिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया सुर्खियां बटोरने में लगी है
हकीकत में नियुक्ति का अधिकार अनुदानित विद्यालय में प्रबंधन समिति को होता है बच्चों की संख्या के आधार पर प्रबंधन समिति बैठक करके वांट निकलती है वांट निकालने के उपरांत इंटरव्यू होता है फिर नियुक्ति होती है जिस पर सभी समिति के मेंबर का साइन होता है विभागीय अधिकारी इस चीज को वेरीफाई करते हैं इसके उपरांत वेतन लगाने में भी बड़ी प्रक्रिया है सब कुछ कंप्लीट होकर जब लेखा विभाग में प्रबंधक अटेंडेंस के अनुसार वेतन का डॉक्यूमेंट पेश करता है लेखा अधिकारी की मोहर लगने के बाद ही ट्रेजरी पेमेंट करता है । लेकिन गोंडा में कुछ अलग ही तरह का खेल है सभी अनुदानित विद्यालयों का मास्टरमाइंड एक हर विद्यालय से नियुक्ति का ठेका केवल एक ही व्यक्ति का पहले बैक डेट में नियुक्ति करता है फिर विभाग में अपील करता है वेतन लगाने के लिए जिस पर शिक्षा विभाग के अधिकारी मंडल अधिकारी रिजेक्ट करते हैं इस आधार पर मास्टरमाइंड कोर्ट का सहारा लेता है और कोर्ट को गुमराह करने के बाद वहां से आर्डर लेकर आता है | फिर वेतन लगवाता है वेतन लगवाने के बाद फिर एरियर के रूप में एक मोटे रकम को एरियर के रूप में लिया जाता है जिसमें नियुक्ति कराने वाला मास्टरमाइंड उस पैसों का बंदर बांट करता है लेकिन हकीकत में जिस अध्यापक की नियुक्ति होती है ताजूब की बात यह है सालों साल विद्यालय भी नहीं जाते हैं और प्रबंधक ऐसे में कैसे उनका वेतन भुगतान के लिए लेखा विभाग में भेज देते हैं हालांकि इन सब की जिम्मेदारी लेखा विभाग की नहीं होती है लेकिन बेसिक शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी इस पर जरूर बनती है स्कूल मैं कितने अध्यापक नियुक्त है और क्या अध्यापक आते हैं या नहीं आते हैं बच्चों की संख्या हकीकत में क्या है और किस आधार पर नियुक्ति की गई है। गोंडा में ऐसे भी विद्यालय हैं जिसमें 50 से अधिक टीचर कार्यरत है और कुछ विद्यालयों में तो सफेद पोस् नेताओं के भी लोगों की नियुक्ति हुई है कुछ पूर्व में गोंडा में रहे अधिकारियों के परिवार भी इसका लाभ ले रहे हैं हालांकि नियुक्ति के नाम पर एक बड़ी असूली भी की जाती है हाल ही में कटरा थाना में मुकदमा भी दर्ज हुआ है नियुक्ति के नाम पर पैसा वसूली करने का आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो काफी पैसा नौकरी के नाम पर दिए हैं लेकिन कैमरे पर बोलने से इसलिए डर रहे हैं उनको कहीं ना कहीं आस है कि अभी भी नौकरी लग सकती है और अगर कैमरे के सामने या पुलिस में कंप्लेंट कर दिया तो मेरा लाखों रुपया जो एडवांस में गया है नौकरी के नाम पर वह वापस नहीं हो पाएगा। हालांकि हकीकत तो यह है नौकरी अब दे पाना बहुत ही मुश्किल है और नौकरी के नाम पर दिए गए पैसे तो शायद अब मिल भी नहीं सकते। इन चीजों को लेकर कई बार शिकायत हुई और शिकायत शासन ने संज्ञान में लेते हुए एसआईटी जांच के लिए भी आदेश किया लेकिन 5 साल एसआईटी जांच होने के बावजूद भी अभी तक निष्कर्ष निकलकर नहीं आया । ऐसे में जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आती किसी को भी दोषी कहना उचित नहीं होगा ।