मानस से लिया गया चालीसा का सोरठा व दोहा दिक्षिता मिश्रा
गोंडा। हिंदू धर्म को मानने वाले पूरे विश्व में व्याप्त हैं। धार्मिक पूजा व अनुष्ठान में जिस तरह श्री गणेश जी की आराधना होती है उसी तरह ‘श्री’ श्री हनुमान जी का आह्वान किया जाता है। कलियुग के श्री हनुमान जी को ही माना जाता है। इसलिए सामान्य व्यक्ति भी यदि मंत्र आदि नहीं जानता है तो हनुमान चालीसा का पाठ करता है। खासकर उस वक्त जब गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी रामचरित मानस का पाठ होता है। लेकिन साहित्य जगत के इतर बहुत कम लोग ही जानते हैं कि हनुमान चालीसा की रचना किसने की। या ये कह सकते हैं कि उंगलियों की गिनती के लोग ही जानते हैं।
तो आइये हम आपको बताते हैं कि प्रमाणिकता क्या है। किसने कालजयी रचना हनुमान चालीसा की रचना की है।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म श्रावण शुक्ल सप्तमी 15 54 वि सं को गोंडा जनपद में सरयू घाघरा के संगम सूकर खेत पसका के निकट राजापुर ग्राम में हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन निर्धनता एवं संकटों में बीता। गोस्वामी जी के पिता श्री आत्माराम दूबे और माता बहराइच जिले के दहौड़ाताल गांव निवासी पंडित धनीर मिश्र की पुत्री तुलसी देवी थीं। गोस्वामी तुलसीदास जी का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली के साथ हुआ था। गोस्वामी जी का बचपन का नाम रामबोला था। सूकरखेत संगम निवासी गुरु नरहरि दास ने रामबोला नाम बदलकर तुलसीदास रखा और दीक्षा दी। अपनी विद्वता के कारण लोक जीवन में तुलसीदास जी बहुत लोकप्रिय हुए और बड़े बड़े रूढिवादी पंडितों को धूल चटाई। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस, विनय पत्रिका, कवितावली, दोहावली, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, रामलला नहछू, जानकी पार्वती मंगल, हनुमान बाहुक, रामाज्ञा प्रश्न, कृष्ण गीतावली आदि प्रसिद्ध रचनाएं समाज को प्रदान की। लेकिन तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना नहीं की। गोस्वामी तुलसीदास जी के कुछ वर्षों बाद ही एक और मनीषी ने जन्म लिया था। उनका नाम संत तुलसीदास था। संत तुलसीदास के पूर्वज बलरामपुर तहसील के भोजपुर से आकर भवनियापुर में बस गए थे। जो देवीपाटन के समीप स्थित है। संत तुलसीदास का जन्म एक कुर्मी परिवार में हुआ था। युवा अवस्था में आपको वैराग्य उत्पन्न हो गया और आपने घरबार छोड़कर देवीपाटन से दो किलोमीटर पूरब एक कुटी बनाकर रहने लगे। बाद संत तुलसीदास के नाम से ही एक गांव बस गया। जो बाद में एक नगर के रूप में विकसित हुआ। आज बलरामपुर जिले के तुलसीपुर तहसील व नगर पंचायत के रूप में जाना जाता है। संत तुलसीदास हनुमान जी के अनन्य भक्त और सिद्ध साधक थे। हिन्दी साहित्य के साधक डा सूर्य पाल सिंह, लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा शैलेंद्र नाथ मिश्र, साहित्यकार सूर्य प्रसाद मिश्र तथा अवधी साहित्य के हस्ताक्षर कवि डा सतीश आर्य कहते हैं कि संत तुलसीदास जी ने ने 18वीं शताब्दी में हनुमान चालीसा की रचना की। यह कालजयी रचना आम जनजीवन में लोकप्रिय है। यही नहीं कम लिखा पढा होने के बावजूद संत तुलसीदास जी ने ने हनुमान साठिका और लवकुश कांड की भी रचना की। हनुमान चालीसा के प्रारंभ एवं अंत में दोहे का वाचन होता है वह गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई है। दोहे के साथ हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले अधिकांश लोगों को भ्रम हो जाता है। द्रष्टव्य है कि हिन्दी साहित्य के मनीषियों ने हनुमान चालीसा को गोस्वामी तुलसीदास की कृतियों में स्वीकार नहीं किया है। आईटीआई मनकापुर की ओर से वर्ष 1993 में गोंडा के कवियों और शायरों के एक प्रतिनिधि संकलन पाटल और पलाश प्रकाशित की गई जिसमें हिन्दी साहित्य के मनीषियों ने पुष्टि की है कि हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने नहीं संत तुलसीदास ने की है।