अयोध्या महायोजना 2031 ने बिगाड़ा समीकरण

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उप मुख्यमंत्री भी नहीं मना पाए व्यापारियों को
ब्राह्मण व किसान भी विरोध में
सीएम के रोड शो से सभी को एक साथ साधने की कोशिश
दिक्षिता मिश्रा
अयोध्या। अयोध्या जैसी प्रतिष्ठित सीट पर भाजपा संघर्ष करती दिख रही है। यहां से भाजपा ने विधायक वेद प्रकाश गुप्ता को मैदान में उतारा है , जबकि समाजवादी पार्टी ने तेज नरायन उर्फ पवन पांडेय को उतारा है। कांग्रेस व बसपा किसी कोने में नहीं दिख रही है लेकिन अयोध्या सीट पर भाजपा व सपा में सीधी लड़ाई है। उत्तर प्रदेश की चुनावी गतिविधि व पूरी राजनीति भाजपा ने श्री राम जन्मभूमि को समर्पित किया लेकिन अयोध्या को निखारने के लिए बनी अयोध्या महायोजना 2031 ने पूरे समीकरण को बिगाड़ दिया है। महायोजना से करीब 4 हजार व्यापारी बेघर हो रहे हैं। इससे अयोध्या के सैकड़ों व्यापारी नाराज हैं।
इस नाराजगी को दूर करने के लिए उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा अयोध्या आए और व्यापारियों के साथ मीटिंग की लेकिन आधे व्यापारी मीटिंग छोड़ कर चले गए। डिप्टी सीएम नाराजगी दूर नहीं कर पाए। आश्वस्त भी नहीं कर सके कि उन्हें भाजपा का संरक्षण मिलेगा। इसके अलावा क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या छुट्टा जानवर की हैं। इससे निजात दिलाने की पहल पर भाजपा ने गंभीरता नहीं दिखाई। हालांकि इस बडी़ समस्या को प्रधानमंत्री मोदी भांप गये और 10 मार्च के बाद समस्या से निजात दिलाने का ऐलान किया लेकिन भाजपा इसे भी नहीं भुना पाई। दूसरी समस्या ब्राह्मणों के खिलाफ हुई विभिन्न कार्रवाइयों को पटाक्षेप करने की कोशिश नहीं की गई। नाराज ब्राह्मणों को साधने की पहल नहीं की गई। तीसरी समस्या अयोध्या महायोजना 2031 की जिससे अयोध्या के व्यापारी नाराज हो गए। महायोजना 2031 में अयोध्या को संवारने का खाका है लेकिन इसमें चौक से होते हुए देवकाली मार्ग, रकाबगंज से अयोध्या मार्ग सहित कई सड़कों को चौड़ीकरण करना है। इन सड़कों को 100 फिट चौड़ी करने पर करीब चार हजार मकान दुकान जमींदोज हो जाएंगे। इससे अयोध्या के व्यापारी नाराज हैं। अयोध्या विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार भले ही सभी अपनी जीत के लिए आश्वस्त हों लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। अयोध्या से न उजड़े इसकी गारंटी देने वालों के पक्ष में लोग हसरत भरी निगाह से देख रहे हैं। 24 फरवरी को योगी आदित्यनाथ रोड शो करेंगे और लोगों को साधने की कोशिश करेंगे। परंतु किसान, व्यापारी, ब्राह्मण व आम लोग सीएम से कितना संतुष्ट होंगे यह समय बताएगा।

अयोध्या में कभी नहीं चला जतीय समीकरण
ब्राह्मण बाहुल्य अयोध्या विधानसभा में सिर्फ तीन बार जीत सके ब्राह्मण उम्मीदवार

अयोध्या। 1989 से जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द घूमती राजनीति का असर अयोध्या में नहीं दिखा। दलगत भावनाओं में फंसकर पूरे प्रदेश की राजनीति की हवा बदलती रही लेकिन अयोध्या सीट पर मुस्लिम समुदाय को छोड़कर सभी अन्य जातियों पर यहां के मतदाताओं ने अपनी कृपा बनाए रखी। अयोध्या में सबसे अधिक मतदाता ब्राह्मण हैं लेकिन 1967 से लेकर पिछले यानि 2017 तक समीकरण के आधार पर तीन बार ब्राह्मण उम्मीदवार को विजयश्री मिली।
पौराणिक नगरी अयोध्या की स्थापना विवस्वान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज ने किया था, ऐसी मान्यता है। 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया। अयोध्या विधानसभा का उदय 1967 में हुआ। अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए और 2022 में इस सीट पर 11वां चुनाव हो रहा है।
1967 में पहला चुनाव जनसंघ के वृजकिशोर अग्रवाल ने जीता था, जबकि अयोध्या में वैश्य मतदाताओं की संख्या 22000 से 30 हजार के करीब मानी जाती है। 1969 में 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर चुनाव जीते थे। उनके विरादरी की यहां मामूली संख्या है। 1974 में वेद प्रकाश अग्रवाल दोबारा जीते। केंद्रीय इमर्जेंसी के बाद कांग्रेस के विरोध में सीट पर पहली बार जनता पार्टी का मुखर उदय हुआ और अयोध्या से जय शंकर पाण्डेय विजयी हुए। अयोध्या ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है लेकिन जयशंकर पांडेय की जीत जनता का कांग्रेस के इमर्जेंसी का प्रतिकार था। लेकिन 1980 कांग्रेस ने पुनः वापसी की और निर्मल खत्री को विजयी बना दिया। 1985 में सुरेन्द्र प्रताप सिंह, 1989 में जनता दल से जयशंकर पांडेय जीते। 1991 में राम लहर के साथ भारतीय जनता पार्टी से लल्लू सिंह चुनाव जीते और 2007 तक वह लगातार विधायक रहे। 2012 में परिदृश्य बदला और समाजवादी पार्टी से तेजनरायन उर्फ पवन पांडेय विजयी रहे। 2017 भाजपा से वेद प्रकाश गुप्ता जीते और 2022 चुनाव के मैदान में पुनः भाग्य आजमा रहे हैं। अयोध्या के प्रेम नरायन दूबे कहते हैं कि अयोध्या में जातीय लहर कभी नहीं रही। सरस्वती विद्या मंदिर अयोध्या के प्रधानाचार्य अवनि शुक्ला कहते हैं कि यदि जातीय समीकरण की बात होती तो लल्लू सिंह कभी विधायक न बनते। यहां जातीय नहीं निष्ठा की राजनीति होती है।
इनसेट
1989 रहा जातीय राजनीति का टर्निंग समय
1989 में जनता दल की जीत हुई लेकिन यहीं से समाजवादी पार्टी का उदय हुआ। 1990 राममंदिर आंदोलन चरम पर पहुंचा और जाति व संप्रदायवाद का जन्म हुआ। इसके बाद बसपा पार्टी के समय जातीय ध्रुवीकरण को हवा मिली। धीरे-धीरे दलगत भावनाओं के वशीभूत होकर राजनीतिक खेमे में जातियों का विभाजन हो गया। हालांकि राम की नगरी जिस तरह राम ने सबको गले लगाया था उसी तरह अयोध्या की जनता ने सबको गले से लगाया।

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